Vajjālagga

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वज्जालग्गं

सव्वन्नुवयणपङ्कयणिवासिणिं पणमिऊण सुयदेविं ।
धम्माइतिवग्गजुयं सुयणाण सुहासियं वोच्छं ॥ १ ॥

अमयं पाइयकव्वं पढिउं सोउं च जे न जाणन्ति ।
कामस्स तत्तवतिं कुणन्ति ते कह न लज्जन्ति ॥ २ ॥

विविहकइविरइयाणं गाहाणं वरकुलाणि घेत्तूण ।
रइयं वज्जालग्गं विहिणा जयवल्लहं नाम ॥ ३ ॥

एक्कत्थे पत्थावे जत्थ पढिज्जन्ति पौरगाहाओ ।
तं खलु वज्जालग्गं वज्ज त्ति य पद्धई भणिया ॥ ४ ॥

एयं वज्जालग्गं सव्वं जो पढइ अवसरम्मि सया ।
पाइयकव्वकई सो होहिइ तह कित्तिमन्तो य ॥ ५ ॥

सोयारवज्जा श्रोतृपद्धतिः

दुक्खं कीरइ कव्वं कव्बम्मि कए पौञ्जणा दुक्खं ।
सन्ते पौञ्जमाणे सोयारा दुल्लहा हुन्ति ॥ १ ॥

सक्कयमसक्कयं पि हु अत्थो सोयारसङ्गमवसेण ।
अप्पुव्वरसविसेसं जणेइ जं तं महच्छरियं ॥ २ ॥

मुत्ताहलं व कव्वं सहावविमलं सुवण्णसङ्घडियं ।
सोयारकण्णकुहररम्मि पयडियं पायडं होइ ॥ ३ ॥

गाहावज्जा गाथापद्धतिः

अद्धक्खरभणियाइं नूणं सविलासमुद्धहसियाइं ।
अद्धच्छिपेच्छियाइं गाहाहि विणा न नज्जन्ति ॥ १ ॥

सालङ्कराहि सलक्खणाहि अन्नन्नरायरसियाहिं ।
गाहाहि पणइणीहि य खिज्जइ चित्तं अइन्तीहिं ॥ २ ॥

एयं चिय नवरि फुडं हिययं गाहाण महिलियाणं च ।
अणरसिएहि न लब्भइ दविणं व विहीणपुण्णेहिं ॥ ३ ॥

सच्छन्दिया सरूवा सालङ्कारा य सरस--उल्लावा ।
वरकामिणि व्व गाहा गाहिज्जन्ती रसं देइ ॥ ४ ॥

गाहाण रसा महिलाण विब्भमा कइजणाण उल्लावा ।
कस्सं न हरन्ति हिययं बालाण य मम्मणुल्लावा ॥ ५ ॥

सव्वो गाहाउ जणो वीसत्थो भणइ सव्वगोठ्ठीसु ।
परमत्थो जो ताणं सो नाओ महछइल्लेहिं ॥ ६ ॥

गाहा रुअइ वराई सिक्किज्जन्ती गवारलोएहिं ।
कीरइ लुञ्चपलुञ्चा जह गाई मन्ददोहेहिं ॥ ७ ॥

गाहे भज्जिहिसि तुमं अहवा लहुयत्तणं वि पाविहिसि ।
गामारदन्तदिढकढिणपीडिया उच्छुलट्ठि व्व ॥ ८ ॥

गाहाणं गीयाणं तन्तीसद्दाण पोढमहिलाणं ।
ताणं चिय सो दण्डो जे ताण रसं न याणन्ति ॥ ९ ॥

छन्दं अयाण माणेहि जा किया सा न होइ रमणिज्जा ।
किं गाहा अह सेवा अहवा गाहा वि सेवा वि ॥ १० ॥

कव्ववज्जा काव्यपद्धतिः

चिन्तामन्दरमन्थाणमन्थिए वित्थरम्मि अत्थाहे ।
उप्पज्जन्ति कईहिययसायरे कव्वरयणाइं ॥ १ ॥

रयणुज्जलपयसोहं तं कव्वं जं तवेइ पडिवक्खं ।
पुरिसायन्तविलासिणिरसणादामं मिव रसन्तं ॥ २ ॥

पाइयकव्वम्मि रसो जो जायइ तह य छेयमणिएहिं ।
उययस्य य वासियसीयलस्स तित्तिं न वच्चामो ॥ ३ ॥

कह कह वि रएइ पयं मग्गं पुलएइ छेयमारुहइ ।
चोरो व्व कई अत्थं घेत्तूणं कह वि निव्वहइ ॥ ४ ॥

सद्दावसद्दभीरू पए पए किं पि किं पि चिन्तन्तो ।
दुक्खोहि कह वि पावइ चोरो अत्थं कई कव्वं ॥ ५ ॥

सद्दपलोट्टं दोसेहि वज्जियं सुललियं फुडं महुरं
पुण्णेहि कह वि पावइ छन्दे कव्वं कलत्तं च ॥ ६ ॥

अणवरयबहलरोमञ्चकञ्चुयं जणियजणमणाणन्दं ।
जं न धुणावइ सीसं कव्वं पेम्मं च किं तेण ॥ ७ ॥

सो सोहइ दूसन्तो कइयणरइयाइ विविहकव्वाइं ।
जो भञ्जिऊण अवयं१ अन्नपयं सुन्दरं देइ ॥ ८ ॥

अत्थक्को रसरहिओ देसविहीणो'णुणासिओ तुरिओ ।
मुहवञ्चणो विराओ एए दोसा पढन्तस्स ॥ ९ ॥

देसियसद्दपलोदृं महुरक्खरछन्दसण्ठियं ललियं ।
फुडवियडपायडत्थं पाइयकव्वं पढेयव्वं ॥ १० ॥

ललिए महुरक्खरए जुवईजणवल्लहे ससिङ्गारे ।
सन्ते पाइयकव्वे को सक्कइ सक्कयं पढिउं ॥ ११ ॥

अबुहा बुहाण मज्झे पढन्ति जे छन्दलक्खणविहूणा ।
ते भमुहाखग्गणिवाडियं पि सीसं न लक्खन्ति ॥ १२ ॥

पाइयकव्वस्स नमो पाइयकव्वं च निम्मियं जेण ।
ताहं चिय पणमामो पढिऊण य जे वि थाणन्ति ॥१३ ॥

सज्जणवज्जा सज्जनपद्धतिः

महणम्मि ससी महणम्मि सुरतरू महणसम्भवा लच्छी ।
सुयणो उण कहसु महं न याणिमो कत्थ सम्भूओ ॥ १ ॥

सुयणो सुद्धसहावो मइलिज्जन्तो वि दुज्जणजणेण ।
छारेण दप्पणो विय अहिययरं निम्मलो होइ ॥ २ ॥

सुयणो न कुप्पइ च्चिय अह कुप्पइ मङ्गुलं न चिन्तेइ ।
अह चिन्तेइ न जम्पइ अह जम्पइ लज्जिरो होइ ॥ ३ ॥

दढरोसकलुसियस्स वि सुयणस्स सुहाउ विप्पियं कत्तो ।
राहुमुहम्मि वि ससिणो किरणा अमयं चिय मुयन्ति ॥ ४ ॥

दिट्ठा हरन्ति दुक्खं जम्पन्ता देन्ति सयलसोक्खाइं ।
एयं विहिणा सुकयं सुयणा जं निम्मिया भुवणे ॥ ५ ॥

न हसन्ति परं न थुवन्ति अप्पयं पियसयाइ जम्पन्ति ।
एसो सुयणसहावो नमो नमो ताण पुरिसाणं ॥ ६ ॥

अकए वि कए वि पिए पियं कुणन्ता जयम्मि दीसन्ति ।
कयविप्पिए वि हु पियं कुणन्ति ते दुल्लहा सुयणा ॥ ७ ॥

सव्वस्स एह पयई पियम्मि उप्पाइए पियं काउं ।
सुयणस्स एह पयई अकए वि पिए पियं काउं ॥ ८ ॥

फरुसं न भणसि भणिओ वि हससि हसिऊण जम्पसि पियाइं ।
सज्जण तुज्झ सहावो न याणिमो कस्स सारिच्छो ॥ ९ ॥

नेच्छसि परावयारं परोवयारं च निच्चमावहसि ।
अवराहेहि१ न कुप्पसि सुयण नमो तुह सहावस्स ॥ १० ॥

दोहिं चिय पज्जत्तं बहुएहि वि किं गुणोहि सुयणस्स ।
विज्जुप्फुरियं२ रोसो मित्ती पाहाणरेह व्व ॥ ११ ॥

रे रे कलिकालमहागइन्द गलगज्जियस्स को कालो ।
अज्ज वि सुपुरिसकेसरिकिसोरचलणङ्किया पुहवी ॥ १२ ॥

दीणं अब्भुद्धरिउं पत्ते सरणागए पियं काउं ।
अवरद्धेसु वि खमिउं सुयणो च्चिय नवरि जाणेइ ॥ १३ ॥

वे पुरिसा धरइ धरा अहवा दोहिं पि धारिया धरणी ।
उवयारे जस्स मई उवयरियं जो न पम्हुसइ ॥ १४ ॥

पडिवज्जन्ति न सुयणा अह पडिवज्जन्ति कह वि दुक्खेहिं ।
पत्थररेह व्व समा मरणो वि न अन्नहा होइ ॥ १५ ॥

सेला चलन्ति पलए मज्जायं सायरा वि मेल्लन्ति ।
सुयणा तहिं पि काले पडिवन्नं नेय सिढिलन्ति ॥ १६ ॥

चन्दणतरु व्व सुयणा फलरहिया जइ वि निम्मिया विहिणा ।
तह वि कुणन्ति परत्थं निययसरीरेण लोयस्स ॥ १७ ॥

दुज्जणवज्जा दुर्जनपद्धतिः

हयदुज्जणस्स वयणं निरन्तरं बहलकज्जलच्छायं ।
सङ्कुद्धं भिउडिजुयं कया वि न हु निम्मलं दिट्ठं ॥ १ ॥

थद्धो वङ्कग्गीवो अवञ्चिओ विसमदिट्ठिदुप्पेच्छो ।
अहिणवरिद्धि व्व खलो सूलादिन्नु१ व्व पडिहाइ ॥ २ ॥

नहमासभेयजणणो दुम्मुहओ अत्थिखण्डणसमत्थो ।
तह वि हु मज्झावलिओ नमह खलो नहरणसरिच्छो ॥ ३ ॥

अकुलीणो दोमुहओ ता महुरो भोयणं मुहे जाव ।
मुरौ व्व खलो जिण्णाम्मि भोयणे विरसमारसइ ॥ ४ ॥

निद्धम्मो गुणरहिओ ठाणविमुक्को य लोहसम्भूओ ।
विन्धइ जणस्स हिययं पिसुणो बाणु व्व लग्गन्तो ॥ ५ ॥

जम्मे वि जं न हूयं न हु होसइ जं च जम्मल क्खे वि ।
तं जम्पन्ति तह च्चिय पिसुणा जह होइ सारिच्छं ॥ ६ ॥

गुणिणो गुणेहि विहवेहि विहविणो होन्तु गव्विया नाम ।
दोसेहि नवरि गव्वो खलाण मग्गो च्चिय औव्वो ॥ ७ ॥

सन्तं न देन्ति वारेन्ति देन्तयं दिन्नयं पि हारन्ति ।
अणिमित्तवइरियाणं खलाण मग्गो च्चिय औव्वो ॥ ८ ॥

परविवरलद्धलक्खे चित्तलए भीसणे जमलजीहे ।
वङ्कपरिसक्किरे गोणसे व्व पिसुणे सुहं कत्तो ॥ ९ ॥

असमत्थमन्ततन्ताण कुलविमुक्काण मोयहीणाणं ।
दिट्ठाण को न बीहइ विन्तरसप्पाण व खलाणं ॥ १० ॥

एयं चिय बहुलाहो जीविज्जइ जं खलाण मज्झम्मि ।
लाहो जं न डसिज्जइ भुयङ्गपरिवेढिए चलणे ॥ ११ ॥

न सहइ अब्भत्थणियं असइ गयाणं पि पिट्ठिमंसाइं ।
दट्ठूण भासुरमुहं खलसीहं को न बीहेइ ॥ १२ ॥

मा वच्चइ वीसम्भं पमुहे बहुकूडकवडभरियाणं ।
निव्वत्तिय कज्जपरंमुहाण सुणयाण व खलाणं ॥ १३ ॥

जेहिं चिय उब्भविया जाण पसाएण निग्गयपयावा ।
समरा डहन्ति विञ्झं खलाण मग्गो च्चिय औव्वो ॥ १४ ॥

सरसा वि दुमा दावाणलेण डज्झन्ति सुक्खसंवलिया ।
दुज्जणसङ्गे पत्ते सुयणो वि सुहं न पावेइ ॥ १५ ॥

खलसज्जणाण दोसा गुणा य को वण्णिउं तरइ लोए ।
जइ नवरि नायराओ दोहिं जीहासहस्सेहिं ॥ १६ ॥

मित्तवज्जा मित्रपद्धतिः

एक्कं चिय सलहिज्जइ दिणेसदियहाण नवरि निव्वहणं ।
आजम्म एक्कमेक्केहि जेहि विरहो च्चिय न दिट्ठो ॥ १ ॥

पडिवन्नं दिणयरवासराण दोण्हं अखण्डियं सुहइ ।
सूरो न दिणेण विणा दिणो वि न हु सुरविरहम्मि ॥ २ ॥

मित्तं पयतोयसमं सारिच्छं जं न होइ किं तेण ।
अहियाएइ मिलन्तं आवइ आवट्टए पढमं ॥ ३ ॥

तं मित्तं कायव्वं जं किर वसणम्मि देसकालम्मि ।
आलिहियमित्तिबाउल्लयं व न परंमुहं ठाइ ॥ ४ ॥

तं मित्तं कायव्वं जं मित्तं कालकम्बलीसरिसं ।
उयएण धोयमाणं सहावरङ्गं न मेल्लेइ ॥ ५ ॥

सगुणाण निग्गुणाण य गरुया पालन्ति जं जि पडिवन्नं ।
पेच्छह वसहेण समं हरेण वोलाविओ अप्पा ॥ ६ ॥

छिज्जौ सीसं अह होउ बन्धणं चयौ सव्वहा लच्छी ।
पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जं होइ तं होउ ॥ ७ ॥

दिढलोहसङ्कलाणं अन्नाण वि विविहपासबन्धाणं ।
ताणं चिय अहिययरं वायाबन्धं कुलीणस्स ॥ ८ ॥

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